Thursday, March 25, 2021

Absolute power corrupts absolutely

यह बात महात्मा गांधी भी अच्छी तरह से जानते थे इसलिए वे हमेशा ग्राम स्वराज की कल्पना करते हुए शक्ति के विकेंद्रीकरण पर ज़ोर देते थें। गांधीजी का कहना था कि जो हम स्वतंत्रता संग्राम लड़ रहे हैं वह अंग्रेजों के विरुद्ध नहीं बल्कि अंग्रेजी व्यवस्थाओं के विरुद्ध है। वह कहा करते थे अंग्रेज रह जाए और उनकी व्यवस्था चली जाए तो मैं समझूंगा कि स्वराज आ गया और अंग्रेज चले गए पर उनकी व्यवस्था है रह जाए तो मैं समझूंगा कि स्वराज नहीं आया। वह संग्राम केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए नहीं था। उसका उद्देश्य स्वराज्य की स्थापना था उस स्वराज का अर्थ था कि भारत के सार्वजनिक व्यवस्थाएं भारत की विशिष्ट सभ्यता एवं प्रकृति के अनुरूप होंगी, भारत के लोग भारतीय ढंग से अनुशासित जीवन जीयेंगे। 

अब सवाल उठता है कि साध्य एवं साधन दोनों के प्रति इतनी स्पष्टता होते हुए जो स्वतंत्रता संग्राम गांधी जी जैसे सत्याग्रह के नेतृत्व में लड़ा गया उसकी परिणति अंग्रेजी व्यवस्था को सुदृढ़ एवं स्थाई करने वाले संविधान में कैसे हुई? यह निश्चित ही भारतीय इतिहास का एक अनुत्तरित प्रश्न है। 

कैसे भारतीय संविधान में गांधीवादी विचारों को दबाया गया और पश्चिमी विचार और व्यवस्थाओं को मूल रूप दिया गया। हम सब भारत के वर्तमान दृश्य को देखकर दुखी और चिंतित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष बाद हमारी चार पीढ़ियांँ गुजर चुकी हैं और पांचवी पीढ़ी अब भारतभूमि पर है। ऐसे समय पर जब हम भारत को देखते हैं तो हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या यह भारत का वही चित्र है जिसका निर्माण करने के लिए इस देश ने एक लंबा और विकट स्वाधीनता संग्राम लड़ा था? स्वाधीनता संग्राम का जिन्होंने दर्शन तैयार किया, उसके लिए जिन्होंने प्रेरणा भूमि तैयार की, उन लोगों का स्वाधीन भारत का चित्र क्या था? वह चित्र मूर्त क्यों नहीं कर पाए? क्या हमारे अंदर संकल्प की कमी थी? क्या हमें इसकी स्पष्ट कल्पना नहीं थी? क्या कारण है कि वह चित्र नहीं बन पाया? 

आज कि जो शिक्षा प्रणाली, प्रशासन तंत्र है यह तो अंग्रेजों का बनाया हुआ है। उन्होंने क्रमशः इस तंत्र को खड़ा किया। हम उसका विस्तार करते चले जा रहे हैं। इस संदर्भ में डॉ राम मनोहर लोहिया का एक वाक्य स्मरण में आता है वह कहते थे कि Congress government is equal to British government minus efficiency plus corruption. उनके कहने की अपनी ही शैली थी और उस शैली में वे कहते थे कि यह जो ब्रिटिश गवर्नमेंट की कार्य पद्धति है, यह उनका जो प्रशासन तंत्र है, वही हम जैसे का तैसा लेकर चल रहे हैं, उसमें हमने कोई परिवर्तन यह संशोधन नहीं की है बस उसे और अधिक असक्षम और भ्रष्ट बना लिया है। 

गांधी जी ने 1909 में हिंद स्वराज लिखा था उसमें उन्होंने पश्चिम की सभ्यता को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह सब बता हमें नहीं चाहिए। 1945 में भी अपने उसी आग्रह पर अटल रहे और अपने हिंद स्वराज के सपने को फिर से रेखांकित किया, फिर से दोहराया। लेकिन भारत तो उस रास्ते पर नहीं चला। गांधी का कहना था कि भारत शहरों में नहीं गांव में रहेगा, भारत महलों में नहीं झोपड़ियों में रहेगा, लेकिन हम तो अब केवल अट्टालिकाऔ का निर्माण कर रहे हैं, केवल शहरों का विस्तार कर रहे हैं। ग्राम शहर बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। जिस सपने को लेकर हमने स्वाधीनता आंदोलन में प्रवेश किया और विजयी हुए, उससे उल्टी दिशा में जाते दिखाई दे रहे हैं।  


स्त्रोत: श्री देवेंद्र स्वरूप द्वारा संविधान की औपनिवेशिक पृष्ठभूमि। 

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