Thursday, April 8, 2021

हिंदुओं की भोग प्रवृत्ति एवं संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)

आज के परिवेश में देखा जाए तो हम हिंदुओं की मानसिकता भोग प्रवृत्ति की हो गई है। हम हर कार्य में अपनी स्वार्थता देखते हैं। जबकि हम वह हिंदू हुआ करते थे जो भोजन के लिए भी ग्रहण या सेवन जैसी शब्दावली का प्रयोग करते थे। मुझे याद है जब मैं शाखा में जाया करता था तो कुछ लोग मुझसे कहा करते थे शाखा में जाने से तुझे क्या मिलेगा? समय की बर्बादी होगी आदि। लेकिन संघ नियम है की यहां आपको कुछ नहीं दिया जाएगा बल्कि आपके पास जो भी होगा वो भी ले लिया जाएगा। जब आप संघ में जाए तो अर्पण के भाव से जाएं। जब हम किसी संस्था या संगठन से जुड़े तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि उससे हमें क्या मिलेगा बल्कि यह सोचना चाहिए कि हम उस संघ या संस्था को क्या दे सकते हैं। एक छोटे आयोजन से ले कर बड़े कार्यक्रमों तक को करने के लिए संघी कभी किसी के आगे हाथ नही फैलाते, आपस में ही धनराशि का संकलन कर स्वयं का स्वाभिमान बनाए रखते हुए हर कार्य को करते हैं। इसीलिए किसी पर आश्रित नहीं होते और निर्भीक होकर अपने उद्देश्य की और अग्रसर रहते हैं। 

उद्देश्य यह है की एक श्रेष्ठ व्यक्ति के निर्माण के आधार पर राष्ट्र का निर्माण करना। श्रेष्ठ व्यक्ति भोगी नहीं हो सकता, त्याग और समर्पण ही मानव को पृथ्वी के योग्य बनाता है। 


हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि संघ की स्थापना उस समय पर हुई थी जब हिंदुओं की सुनने वाला कोई नहीं था हिंदू खंडों में बटा हुआ था। तब परम पूजनीय डॉक्टर हेडगेवार जी ने हिंदुओं की एकता के लिए और चेतना जागृत करने के लिए एक छोटा सा प्रयास किया जो आज विश्व का सबसे बड़ा हिंदू संगठन के रूप में उभर कर आया है। संघ की विचारधारा संघ को प्रोत्साहित करना या उसका प्रचार प्रसार करना नहीं है बल्कि हिंदुओं में हिंदुत्व की भावना को जागृत करना है। जो भी व्यक्ति संघ को गहराई से या संघ से मूल रूप से जुड़े हैं वह इस बात से सहमत होंगे कि हमने संघ को शाखा से ही जाना है हमारे लिए आर एस एस या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपरिचित शब्द से लगते हैं। संघ पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार नहीं है ना ही हो सकता है क्योंकि हर एक स्वयंसेवक ने केवल अपना गुरु परम पवित्र भगवा ध्वज को माना है ना की किसी व्यक्ति विशेष को। संघ में कई लोग आए और उन्होंने अपना योगदान दिया लेकिन इससे उनका संघ पर अधिकृत अधिकार नहीं हो जाता। संघ इस सनातन समाज का अभिन्न अंग है, जो इसी भगवा ध्वज की प्रेरणा से जन्मा है।

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