Sunday, April 11, 2021

संविधान सभा का स्वरूप एवं कार्यपद्धति : एक विश्लेषण

हमें बचपन से पढ़ाया गया है कि संविधान तो हमने बनाया, इसको बनाने के लिए संविधान सभा ने तीन साल तक मेहनत की, उस सविंधान सभा में स्वाधीनता आंदोलन से निकले हुए सभी शिखर नेता उपस्थित थे, इसलिए हम मानते हैं कि यह हमारे द्वारा बनाया हुआ संविधान है। आज इसी बात का छोटा सा विश्लेषण करते हैं। 

कांग्रेस के नेता हमेशा से भारतीय सरकार अधिनियम, 1935 का विरोध करते आए थे। उनका नारा था कि हमें 1935 अधिनियम नहीं चाहिए और वयस्क मताधिकार पर आधारित संविधान सभा चाहिए। लेकिन अंग्रेजों ने उनकी बातों को स्वीकार नहीं किया और द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होते ही सबसे पहले 1935 के अधिनियम के आधार पर विधानसभाओं के चुनाव कराए। इस अधिनियम के अनुसार केवल 15% लोगों को मताधिकार दिया गया था। कांग्रेस को 15% मताधिकार से बनी प्रांतीय सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुनी गई संविधान सभा को स्वीकार करना पड़ा। इस प्रकार संविधान सभा में 15% लोगों द्वारा चुने गए सदस्य थे। 

संविधान सभा कि जो समितियाँ बनाई गई थी उनकी बैठकों में अधिकतर सदस्य अनुपस्थित ही रहते थे। संविधान सभा में लगभग 22 समितियाँ थी जिन समितियों में 7-8 समितियाँ महत्वपूर्ण थी। उनमें से प्रारूप समिति सबसे महत्वपूर्ण थी जिस की कार्य विधि के बारे में टिप्पणी करते हुए संविधान सभा के सदस्य टी टी कृष्णमाचारी कहते हैं कि प्रारूप समिति में 7 सदस्य थे। जिसमें से एक ने इस्तीफा दे दिया था, एक सदस्य का देहांत हो गया, एक सदस्य तो अमेरिका में रहते थे, एक सदस्य राजनीतिक कार्यों में व्यस्त थे जिसके पास संविधान सभा के लिए समय नहीं था और 1-2 दिल्ली से बाहर रहते थे जिनके लिए दिल्ली की सर्दी में रहना असंभव था। अतः संविधान बनाने की सारी जिम्मेदारी डॉक्टर अंबेडकर के कंधों पर थी।

सविंधान सभा 2 धरातल पर कार्य कर रही थी। एक धरातल पर समितियाँ थी और दूसरे पर सामान्य सदस्यगण, सामान्य सदस्यों की संविधान के निर्माण में कोई भूमिका नहीं थी। इस संदर्भ में के. हनुमंतैय्या ने कहा कि संविधान सभा को यह जो कुछ लोग चला रहे हैं वह बुद्धिमान है, कानून के अच्छे जानकार है, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन से उनका कोई संबंध नहीं रहा, वे कभी किसी गांव में नहीं गये। गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के द्वारा जो विचारधारा को हमारे सामने प्रस्तुत किया उस विचारधारा से उनका कोई संबंध नहीं है और यही लोग इस संविधान की रचना में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह संविधान भारत की आत्मा को प्रतिबिंबित नहीं करता, यह संविधान स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा पर आधारित नहीं है इसका भारत की मिट्टी से कोई संबंध नहीं है।

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