शुरुआत कुछ मूलभूत प्रशनों से। "हमें इतिहास क्यों पढ़ना चाहिए?" हमें अपने पूर्वजों के जीवन के बारे में क्यों पढ़ना चाहिए? हमें उन राजाओं के बारे में क्यों पढ़ना चाहिए जिन्होंने हमारे देश पर कई सदियों तक राज किया? जिन्होंने महान स्मारकों का निर्माण किया और विभिन्न रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के प्रवर्तक थे? विश्व के विद्वान पुरुष हमें इसका उत्तर देते है। "इतिहास उन लोगों के लिए अभिशाप बन जाता है जो अपना इतिहास दोहराते हैं।" खैर, एक बार जब हम इतिहास पढ़ना शुरू करते हैं, क्या हम जो इतिहास हम पढ़ रहे हैं वह प्रमाणिक है बड़ा सवाल ये भी होना चाहिए।
वे कहते हैं कि इतिहास हमेशा विजेताओं द्वारा लिखा जाता है और हारने वालों का इसमें कोई स्थान नहीं। हारने वाले इतिहास में कहीं लुप्त हो जाते हैं। सच है, मेरे लिए इतिहास विजेताओं की "कहानी" है। हालाँकि, हमें उन लोगों का क्या करना चाहिए जो अपने और अपने राजनीतिक आकाओं की जरूरत के हिसाब से इतिहास को तोड़ मरोड़ कर जनता के सामने पेश करते हैं? ऐसे परिदृश्य में जहां एक पक्ष पहले से ही वंचित है और दूसरे पक्ष के बारे में वे अपने वैचारिक जरूरतों के हिसाब से इतिहास को लिखते हैं। ऐसे समय में जो इतिहास पढ़ना चाहते हैं क्या वे इतिहास में हुई घटनाओं की सत्यता जान पाएंगे?
प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक एस. एल भैरप्पा अपनी पुस्तक "आवरण" में स्वयंभू इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों के इन कृत्यों को उजागर करने की कोशिश की है।
किताब की शुरुआत एक ऐसी घटना से होती है, रज़िया कुरैशी हंपी में जो भी देखती है न जाने क्यों वे दृश्य उसे अंदर तक झकझोर देता हैं। लेकिन उसे क्या पता था जो वे देख रही है वह तो केवल एक लहर मात्र है उस समुद्र का जो से पार करना है। उसी समय एक बुरी खबर उसका इंतजार कर रही थी जो उसे अंदर तक तोड़ देती है उसके पिता जिनके साथ वे अपने सारे संबंध तोड़ चुकी थी उनका स्वर्गवास हो जाता है लेकिन यह खबर उसके जीवन में सब कुछ बदल देता है
यह खबर सुनते ही वह अपने पैतृक गाँव चली जाती है पिता तो नहीं होते लेकिन वे अपने पिता की निजी लाइब्रेरी में सजी किताबों को पढ़ने लीन हो जाती है। उसे उन किताबों में क्या मिलता है? यह उसके जीवन और उसके आसपास के लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करता है? और उन किताबों को पढ़ने के बाद वह क्या करती है? यह सब जानने के लिए किताब पढ़िए।
यह केवल एक उपन्यास मात्र नहीं है, यह भारत के मुसलमानों के रीति-रिवाजों, प्रथाओं और जीवन की जानकारी के बारे में पाठकों की चेतना को जागृत करने वाली हैं। यह हमें इतिहास के दूसरे पहलू से अवगत कराती है और हमें एक पूरी तरह से अलग दुनिया में ले जाती, जहाँ मुगलों ने इस राष्ट्र पर प्रभुत्व जमाया था। उनके क्या रीति-रिवाज थे? उन्होंने अपने रीति-रिवाज मानने वालों के साथ कैसा व्यवहार किया और ना मानने वालों के साथ कैसा। और उन्होंने उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया, जिन पर उन्होंने विजय प्राप्त की?
आदि...
आदि...
मुझे पुस्तक में क्या पसंद आया? वास्तव में बहुत कुछ। इस तरह की किताब को लिखने के लिए पर्याप्त मात्रा में शोध की आवश्यकता पड़ती है, और यह लिखने के लिए विनम्र साहस चाहिए। हां, यह मुगल शासन के व्यापक रूप से स्वीकृत दृष्टिकोण के खिलाफ जाती है और उस समय के लोगों पर बर्बरता को तथ्यों और आंकड़ों के सामने लाती है। यह सब साबित करने के लिए वह उस समय के मुगल इतिहासकारों द्वारा लिखी गई पुस्तकों का संदर्भ देते है जो किताब के अन्तिम पृष्ठों में दिए गए हैं।
इस पुस्तक को पढ़ना वास्तव में मेरे लिए एक शिक्षाप्रद अनुभव था। जैसा कि श्री भैरप्पा स्वयं कहते हैं, "सत्य को छिपाने का कार्य संस्कृत में आवरण कहलाता है, झूठ फैलाने के कार्य को विक्षेप कहते हैं" इस पुस्तक को पढ़ें और समझें कि इस देश के इतिहास को बताते हुए सच्चाई को कैसे छुपाया गया।
किताब पढ़े और दूसरो को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
It's very good thoughts
ReplyDeleteबहुत ही अद्भुत व्याख्या की है आपने। पढ़ना सफल रहा।
ReplyDelete