Thursday, March 12, 2020

Book Review- आनंदमठ

आनंदमठ सन् 1882 में प्रकाशित हुआ उपन्यास है जो बकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी द्वारा रचित है इस उपन्यास की रचना मूलतः बांग्ला भाषा में हुई थी यह उपन्यास सन् 1773 के उस कालखंड की बात करता है जब बंगाल में अंग्रेजी सरकार भारतवर्ष में पैर पसार रही थी और मुस्लिम शासकों का अत्याचार चरम पर था और उस समय उत्तर बंगाल भुखमरी, अकाल से त्राहि-त्राहि मची हुई थी, लोगो को जाने किस किस प्रकार के रोग हो रहे थे। राजाओं ने अपने राजधर्म को त्याग दिया था।  लोगों के पास खाने के लिए खाद्य नहीं था और मुस्लिम शासकों ने कर और बढ़ा दिया था जिससे लोग आत्महत्या करने पर विवश थे। उस समय एक सन्यासी आंदोलन शुरू हुआ जिसने उस समय की स्थिति का कायापलट कर दिया।

जब राजा निरंकुश होकर अपना राजधर्म भूल जाए, तब राजा का अंत करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है और राज्य व्यवस्था स्वयं वहां के लोगों को चलानी चाहिए।

उस समय मुगलो का अत्याचार हिंदुओं पर चरम पर था उस समय सन्यासियों ने विद्रोह कर अपने हाथों में शस्त्र उठा लिए और धर्म की विजय के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की प्रतिज्ञा कर ली और मातृभूमि के लिए कई सारे युद्ध लड़े और जीते। सन्यासी संप्रदाय ने उस समय हिंदुओं में नई क्रांति की उर्जा का संचार किया और उनका मार्गदर्शन किया।

इस उपन्यास की क्रांतिकारी विचारधारा ने सामाजिक व राजनीतिक चेतना को जागृत करने का काम किया। और इस उपन्यास के माध्यम से कई सारे जय घोष और गीत गाय गए जिससे मातृभूमि के प्रति प्रेम की भावना प्रकट हो सके जिसमें से एक गीत को बाद में राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृत किया गया वो था "वंदेमातरम्"।

इस उपन्यास में लेखक ने कई सारी बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है उन्होंने क्रांतिकारी विचारधारा के साथ, धर्म स्थापना के लिए किए गए व्रत की महत्वता को भी दर्शाया है और उस व्रत के लिए अपना घर-बार, मां-बाप, भाई-बहन, पत्नी, बच्चे आदि का वियोग भी दर्शाने का प्रयत्न किया गया है। और महिलाओं की शौर्य की गाथा दिखाने का भी खूब प्रयत्न किया  गया है।

और इस उपन्यास के माध्यम से सनातन धर्म को समझाने और पूर्ण करने पर बल दिया गया है और धर्म स्थापना के बीच आने वाली बाधाओं से निपटने के उपायों के बारे में भी बताया गया है धर्म स्थापना मैं अपनी इंद्रियों में संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण होता है उस पर भी बल दिया गया है।

इस उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता के क्रांतिकारियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और क्रांतिकारियों में नई ऊर्जा का संचार हुआ जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में नई गति देने का प्रयास किया। और क्रांतिकारी युद्ध मे उसके जयघोष की अलग ही महत्व था होती है जिससे लोगों में नया बल नई उर्जा और शक्ति का संचार होने लगता है जैसे इस उपन्यास में सन्यासी गणों में ऊर्जा भरने के लिए इस जयघोष को अपनी ढाल बनाया।
हरे मुरारे मधुकैटभारे।
गोपाल गोविंद मुकुंद शौरे।

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